"दौलत की दीवार"
हो टिमटिम, पर दीप जलाना चाहता हूं
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं
जगमग-जगमग रौशनी
है महलों की ताक़ पर ,
रोती है बस ज़िन्दगी
इस कदर फुटपाथ पर ,
कुछ घरों को गिराना चाहता हूं!
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं!!
इतना मत अगराओ
अपने हथियारों की थाती पर,
गरजेगी बन्दूक़ वही फिर
कल तुम्हारी छाती पर ,
मैं क़लम में ख़ून भरना चाहता हूं!
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं!!
मेरी मेहनत से झूमती
हैं गन्दुम की बालियां ,
मेरे कौर हड़पने वालों!
अबआयेंगी आंधियां ,
गुल बग़ावत के खिलाना चाहता हूं!
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं!!
वह गुत्थी जो सुलझ सकी न
अब तक मानो बुद्ध से ,
उसका हल निकलेगा यारों
अब तो केवल युद्ध से ,
तीर तरकश में सजाना चाहता हूं!
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं!!
दम भर अपना ज़ोर लगा लो
चतुर खिलाड़ी ,
हर बच्चा,हर गांव बनेगा
नक्सल - बाड़ी ,
मुठ्ठी में है ज़ोर बताना चाहता हूं!
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं!!
आते हैं मज़दूर लय में
जाने क्या गाते हुए ,
आग दामन में छिपाकर
ख़ून बरसाते हुए ,
अब ईंटों से ईंट बजाना चाहता हूं!
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं!!
आसमान में बिजली बनकर
हम कड़केंगे,
कांप उठेगी धरती भी
जब हम भड़केंगे,
मज़लूमों की तानशाही चाहता हूं!
जीवन-पथ को सुगम बनाना चाहता हूं!!
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इन्सानों का यह शोषण
फिर तब न होगा ,
मानव-जीवन का धरा पर
स्वागत होगा ,
स्वर्ग धरती को बनाना चाहता हूं!
दौलत की दीवार गिराना चाहता हूं!!
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Natash
03-Sep-2021 10:48 PM
qabil E tareef sir ,... bohut achcha likha aapne
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Virendra Pratap Singh
03-Sep-2021 10:57 PM
आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,नाताश जी।
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Virendra Pratap Singh
03-Sep-2021 11:47 PM
अच्छा लगा कि आप जैसे क़लम के धनी हमारे साथ हैं।
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